…का चुप साधि रहा बलवाना। रामायण की एक चौपाई है, जब सीता को खोजने के लिए विशाल समुद्र पार करके लंका जाना था, सभी से कहा गया, कोई जाने को तैयार नहीं हुआ। सभी समुद्र पार करने में स्वयं को असमर्थ पा रहे थे। तब जामवंत ने हनुमान से यही कहा, का चुप साधि रहा बलवाना। अरे, हनुमान, तुम तो बहुत बलवान हो, तुमने चुप्पी क्यों साध रखी है। जामवंत ने उन्हें उनकी शक्ति का स्मरण कराया। हनुमान उठ खड़े हुए और आगे की कथा सभी जानते हैं।

रामायण की इस चौपाई की बात इसलिए कि आज भारत युवाओं का देश कहा जा रहा है और युवा ऊर्जा के सबसे बड़े स्रोत होते हैं, भंडार होते हैं। परंतु उस ऊर्जा के सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ पा रहे हैं। लगता है, कहीं किसी जामवंत की खोज करनी होगी, जो उन्हें उनकी शक्ति का स्मरण कराए, साथ ही सही मार्ग भी प्रशस्त करे।

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 10 साल से लेकर 24 साल तक की आयु वाले भारतीयों की संख्या साढ़े 36 करोड़ है। युवाओं की आयु 35 वर्ष तक मानी जाती है और दावा किया जा रहा है कि युवाओं की संख्या 50 करोड़ से अधिक है। यानि हम कह सकते हैं कि युवा शक्ति के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है।

परंतु क्या युवाओं की संख्या अधिक होना मात्र हमारे लिए गर्व की बात है। क्या इस संख्या के अनुपात में युवा देश को कुछ दे पा रहे हैं। क्या देश युवाओं के लिए कुछ ठोस कर पा रहा है। और भी अनेकानेक प्रश्न हैं, जो निश्चित रूप से अनुत्तरित हैं और हमें उनके उत्तर खोजने ही होंगे।

उत्तर खोजने के साथ ही कुछ ऐसे कदम भी उठाने होंगे, जिनसे युवाओं की इस ऊर्जा का देश के लिए सदुपयोग किया जा सके। युवाओं की संख्या देखकर उत्साहित होने के स्थान पर अब समय आ गया है कि हम इससे जुड़ी चिंताओं को भी ठीक से रेखांकित करें।

इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि शिक्षा, रोजगार और उद्यमशीलता के लिए कोई स्पष्ट युवा नीति देश में आज तक नहीं बन पाई। 2012 में केंद्र सरकार ने अपनी युवा नीति के प्रस्ताव में युवा विकास सूचकांक बनाने की बात कही, लेकिन इसके बाद भी यथार्थ यही है कि देश के लगभग सवा करोड़ तेरह युवा प्रति वर्ष काम खोजने वालों की सूची में शामिल हो जाते हैं और उनमें से अधिकांश के पास अपनी प्रतिभा-क्षमता के विकास और उपयोग का कोई माध्यम नहीं होता।

इसके पीछे एक मूल और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि जितनी भी पढ़ाई करके वे आए होते हैं, उसका दुनियादारी से कुछ भी लेना-देना नहीं होता। आंकड़ों की सच्चाई यह है कि भारत में मात्र तीन प्रतिशत से भी कम छात्र ऐसे होते हैं जिन्हें हाई स्कूल स्तर पर कोई कामकाजी शिक्षा मिली हो।

उच्च शिक्षा तक पहुंचने का अवसर प्राथमिक शिक्षा पास करने वाले पांच में से एक ही छात्र को मिल पाता है। और अपना कोई व्यापार प्रारंभ करने की पूंजी या कौशल तो इससे भी कम युवाओं के पास होता है। पढ़ाई खत्म होने या छूट जाने के दो-तीन साल बाद तक कोई मनचाहा काम न मिल पाने पर उनमें निराशा के भाव आना प्रारंभ हो जाते हैं। इसके पीछे अनेक कारण होते हैं, परंतु सबसे बड़ा कारण उनका अकुशल होना ही होता है। अच्छी बात यह है कि भारतीय युवा परिश्रमी तो है, परंतु दिशाहीन है।

भारत में करीब 80 करोड़ लोग 35 वर्ष से कम उम्र के हैं और ये सभी अपने समाज को बदलना चाहते हैं। यह बहुत बड़ी बात है। लेकिन ध्यान रहे, यह पीढ़ी अपने प्रयासों में सफल तो तभी होगी, जब शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल, रोजगार, उद्यमशीलता और सामाजिक मूल्यों की सही जमीन उसे उपलब्ध कराई जाएगी। राष्ट्रीय स्तर पर और राज्यों के स्तर पर मात्र योजनाएं बनाने से काम चलने वाला नहीं है।

यदि योजनाओं को देखा जाए, तो जितनी योजनाएं स्वतंत्रता के बाद से आज तक बनी हैं, और उन पर जितना व्यय किया गया है, उतने में इस देश में कोई बेरोजगार नहीं रह पाता। सडक़ें कांक्रीट की नहीं, सोने या चांदी की होतीं। कोई गरीब नहीं होता। कहीं प्रदूषण नहीं होता। आदि आदि। ऐसा नहीं हुआ। और एक बात जो संभवत: सबसे महत्वपूर्ण है, वह यह कि उनकी शिक्षा पद्धति, हमारी शिक्षा पद्धति, उनकी विचारधारा, हमारी विचारधारा, उनकी नीतियां, हमारी नीतियां, इनसे हमें पूरी तरह से बचना होगा।

पद्धति वही लागू हो, जो इस देश के युवाओं की शक्ति का भरपूर उपयोग कर सके। नीतियां ऐसी हों कि हमारे युवा कौशल का उपयोग इस देश के लिए ही हो, योग्यता और प्रतिभा विदेशी भूमियों पर फसल उगाएं, ऐसा नहीं होना चाहिए। युवा शक्ति का सही उपयोग कर उसे सही दिशा दी जाए तो हम चीन, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, जापान, सभी को हर क्षेत्र में पीछे छोड़ सकते हैं।

लेखक परिचय:

श्रवण गुप्ता

संपादक

www.newshawk.in

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